JO DIN NE KAHA

Monday 24 June 2013

आसान हो गयी है मौत

आसान हो गयी है मौत
कितना सहज था
कितना सरल था जीवन
जब रिश्ते सिर्फ नाम नहीं थे
जीवन्तता थी हर रिश्ते में
जब मामूली सी  खरोंच पर
घबराई माँ फाड़ कर बाँध देती थी अपना आँचल
नन्हे मासूम का तनिक से  क्रंदन पर
बेतहाशा भागते थे बैद्यों, हकीमों, डाक्टरों के घर
मासूम को गोद में लिए पिता मीलों-मील
बाबा की उंगलियाँ पकड़ चलता
दादी के साथ अठखेलियों में मस्त
नानी की कहानियों का नियमित श्रोता
और नाना की आँखों का तारा ..मासूम बचपन
कई मर्तबा दादा दादी नाना नानी बन जाने पर भी
सर पर हाथ बना रहता था माता पिता का
और एक सुखद अहसास ताउम्र बना रहता था
दादा दादी नाना नानी का
उनके न होने पर भी ...............
बंधू बांधव, सखा- मित्र
बेटा- बहू, नाती- पोते
और भी न जाने सजीव रिश्ते
अपने विविध नामकरनों,
विविध रूपों में,
अपनी एक बिशेष हद
और अधिकार के साथ ,
रिश्तों की शक्ल में ढली तमाम देवियाँ ..
हर गम ख़ुशी, जश्न- मातम
में होते थे शरीक न जाने कितने अपने
चुटकियों में हो जाते थे पहाड़ से बोझिल तमाम काम
तब मौत बहुत कठिन थी
घूम जाता था एक एक चेहरा आंखो में
मौत का ख्याल आते ही
मृत्यु शय्या पर भी अनवरत बेचेनी के साथ
बाट जोहती आँखें देख लेना चाहती थीं जीभर
अपने हर प्रिय को आख़िरी बार
कुशल क्षेम भी पूछ लेती थी
आशीषों की झड़ी भी लगा देती थी जुवान
उठ जाती थीं बाहें कलेजे से लगाने को भी
सामर्थ्य के तनिक भी अहसास से
सबकी नजरों से नजरें मिलते हुए
रामचरित मानस के पाठ श्रवन
गंगा जल और तुलसी दल के साथ
जिह्वां के अंतिम साक्षात्कार के साथ
कितनी मुश्किल से निकले थे प्राण ..
पर आज
दोस्ती के भ्रम का पर्याय दोस्त
सीप के तरह अपने कवच में छुपे ईस्ट मित्रों रिश्तेदारों
भौतिक वादी युग में
हर चीज की आवश्यकता की तरह
स्त्री पुरुष का पति पत्नी में तब्दील रिश्ता
अपनी धुन, अपने सपनो ,में खोयी नयी फसल
थरथराती जुवान
सन्नाटों में घिरे मकान
धूमिल आँखें
जर्जर शरीर
और बेहद जरूरत के क्षणों में ही
बेहद तनहा और टूटा हर इंसान
आज भी सुनकर सांकल की आवाज
दौड़ता पड़ता है  दर की तरफ
और फिर उतनी तीव्रता से लौटता है
हवा को गरियाता हुआ
जानता है बख़ूबी
अब न चिट्ठियाँ आयेंगी न डाकिया
अब आयेंगे मेसेज और फ़ोन
जिनके अत्याधुनिकीकरण से बैठा नहीं पायेगा वो तालमेल
संपत्ति की उत्तराधिकरी होने की मजबूरी
या जीवन में कभी भी लिखी जा सकने वाला बरासतनामा 
रोक रहा है धर्मपत्नी को , बेमन  
और बच्चों के डालरों के आगे अर्थहीन है
 रुपयों के मोल बिकने वाली  पिता की संपत्ति भी
स्वार्थ में डूबे रिश्ते
अहसान फरामोश बच्चे
रिश्तों के नाम पर सिर्फ नाम के रिश्ते
तोड़ देते हैं तमामों भ्रम
जो  टूटा करते थे कपाल क्रिया में
जलती लाश के सर पुत्र के बॉस प्रहार से 
आज मौत से पहले बहुत पहले
टूट जाते हैं सारे भ्रम
बड़ी मुश्किल से कटते हैं
जिन्दगी के एक एक पल  
हर दिन पीते हुए अपने ही आंसू
इंतज़ार करता है मौत का
सुहाग रात में नव वधु के सेज पर इंतज़ार की तरह
जीवन जितना कठिन हो रहा है
उतनी ही आसान हो रही है मौत !
 डॉ आशुतोष मिश्र निदेशक आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसीबभनान, गोंडा , उत्तरप्रदेशमोबाइल न० ९८३९१६७८०१


Friday 31 May 2013

बहुत शर्मसार हूँ मैं

बहुत शर्मसार हूँ मैं
बचपन में
रेत में बनाकर मंदिर
मैं झुकाता था सर
और भूले से भी मंदिर पे रख गया
किसी का पाँव
या मंदिर के लिए उपयुक्त कोई मजाकिया शब्द
भी आक्रोश से भर देता था मुझे
कागज़ पे मेरे द्वारा उकेरे
मेरे इस्ट के भाव चित्र पर
किसी का कोई और रंग भर देना
व्यथित कर देता था मुझे
मैं अक्सर उकेरता था
लकड़ियों और पत्थरों पर भगवान्
और बर्दास्त से बाहर थी
मेरी कल्पना में रची, दिल में बसी
किसी भी रचना से तनिक भी छेडछाड ...........
यूं ही होते होते बड़े
कभी किसी नेता, कभी अभिनेता
कभी खिलाड़ी, कभी अनाडी
संगीतकार, गीतकार
माँ- बाप, रिश्तेदार
अग्रजों, अनुजों
संतों, महात्माओं शिक्षकों
और भी ना जाने कितनी
ह्रदय पर प्रतिबिंबित तस्वीरों को
मैंने स्थापित कर लिया था
एक आदर्श मूर्ती के रूप में
इस ह्रदय में ..................
मगर बचपन के घरोंदों की ही तरह
कभी अनजाने, कभी जानकर
कभी प्रमाद् वश, कभी चिढाने के लिए
तोड़ने की कोशिस की गयी इन हृद्यंकित प्रतिमाओं को
तमाम कसमों , तमाम सबूतों का वास्ता देकर
मुझे सत्य से रूबरू कराया
और अंततः तोड़ ही दी गयीं
ये आदर्श प्रतिमाएं
और मैं आक्रोशित और व्यथित भी हुआ
बचपन की मानिंद ही ................
 कुछ प्रतिमाएं टुकड़ों- टुकड़ों में बंट गयीं
कुछ के अंग भंग हुए
कुछ पर गहरे घाव थे
और जिस पर सिर्फ हलके निशान थे
वो थी शिक्षक की प्रतिमा
मैंने उसे गले लगा लिया
शिक्षण को अपना जीवन यापन बना लिया
पर वक़्त के कोहरे में आँखों के सामने
धुंधला छाया
मेरे भी कदम डगमगाए
समाज की मजबूत नीव रखने की जिम्मेवारी से
इतिश्री करके
मैंने अपनी नीव मजबूती के इरादे बनाये
शिक्षण से जुड़े ठेकेदारों में पैठ बनाई
हर साक्षात्कार समिति से चयन समिति तक
अपने नाम की चर्चा छाई
प्रश्नपत्र बनवाने से लेकर
प्रश्नपत्र जंचवाने तक कोई कसर न छोडी
घर से आफिस और आफिस से घर जाते हमेशा ही
गाडी आला अफसर के कार्यालय या घर को  मोड़ी
बच्चों  को मिठाई नहीं खिलाई
पर हर आला अफसर बाबू चपरासी के घर जरूर भिजबाई
पर एक दिन जैसे ही एक
ठेकेदारों के अनुरूप निरीक्षण रिपोर्ट बनाने पर
नोटों की गडडी का तोहफा लेने को हाथ बढ़ाया
बूढ़े की शक्ल में एक प्रकाश पुंज सामने आया
आते ही चिल्लाया
बड़ी आदर्श की प्रतिमाएं बनाता था
नेता, अभिनेता शिक्षक सबमे आदर्श नजर आता था
प्रतिमाओं के टूटने पर बड़ा चिल्लाता था
याद कर जब अपने शिक्षक की बिधि से
तेरा कंपाउंड नहीं बन पाया था
तूने कितना मजाक उड़ाया था 
याद कर शिक्षकों की पार्टी की बात सुनकर
तू तिलमिलाया  था
शिक्षक ने मान्यता दिलाने के लिए सौदा कर डाला सुनकर
कितना बडबडाया था
आज शोधार्थी तुझ पर भी बडबडा रहा है
तेरे बिधियों से वो भी शोध नहीं कर पा रहा है
अब तू भी शाम को जश्न में सरीक हो जाएगा
फिर किसी शोधार्थी का फोन आएगा
तू जानता है पेपर के बिषय में तू कुछ नहीं समझा पायेगा
तो व्यस्तता दिखाकर और बड़ा हो जाएगा
लेकिन एक समय तक इंतज़ार करके
वो शोधार्थी भी तेरे ही तरह किसी रस्ते
पहाडी पर चढ़ जाएगा
तुझे आवाज देगा
पहाडी से पहाडी का रिश्ता पास लाएगा
तू  उसे पहाडी पे जीने का रास्ता बताएगा
लेकिन सम्भ्ब्तः वो कुछ जमीनी सवाल उठाएगा
हो सकता है तब तू नजर नहीं मिला पायेगा
क्योंकि उसकी आँखों में अभी नमी है
पर तेरी आँखों में अब पानी बिलकुल नहीं है
तेरी आँखों में उसे कुछ नजर नहीं आएगा
वो उतरेगा तो कीचड में धंस जाएगा
तू भी आज सौदा करके आया है
रंगरेलियां मनायेगा
लिफाफा तेरे परिवार के लिए खुशियाँ खरीद लाएगा
पर ध्यान से सुन
अर्जुन बनकर तो आज का युद्ध नहीं लड़ पायेगा
इसलिए बन कर कृष्ण अर्जुन का रथ चला
शिक्षको में सोया कृष्ण जगा
छात्र के रूप में हजारों भ्रमित अर्जुन खड़े है उन्हें जगा
उन्हें उकसा, गांडीव उठवा
जब सारे शिक्षक कृष्ण रूप में रथ चलाएंगे
जब सारे अर्जुन गांडीव उठाएंगे
तभी महाभारत समर की तरह भारत समर जीता जाएगा
आने वाले पीढी को जीते जी लाश मत बना
उनकी लाश पे चढ़ अपनी तरक्की का परचम मत फहरा
वक़्त के साथ ये रिवाज में बदल जाएगा
वरना आज तो कृष्ण भ्रमित है
फिर अर्जुन भी भ्रमित हो जाएगा
यह कहकर रश्मि पुंज अंतर्ध्यान हो गया
जाते जाते मेरी औकात समझा गया
आइना दिखा गया
मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही है
मुझे लगता है मैं धरती पर भार हूँ
आज मैं बहुत शर्मसार हूँ

डॉ आशुतोष मिश्र आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी
बभनान, गोंडा , उत्तरप्रदेश
९८३९१६७८०१




Tuesday 28 May 2013

ए पी टी आई चुनाव : क्या हम झुनझुना बजायेंगे ?

 ए पी टी आई चुनाव :  क्या हम झुनझुना बजायेंगे ?

आया आया पर नहीं आया
जैसे ही मैंने अपने बाक्य पे बिराम लगाया
मेरा गैर फार्मेसी दोस्त बुदबुदाया
अरे! क्या आया क्या नहीं आया
अरे मेरे यार ऐ पी टी आई का चुनाव आया
पर मेरा नाम वोटर लिस्ट में नहीं आया
मैंने जब उसे बताया तो उसने फिर सवाल उठाया
ये ऐ पी टी आई क्या बला है
आपका इससे क्या सम्बन्ध भला है 
अरे! ये फार्मसी  शिक्षकों की एक संस्था है
शिक्षकों को एक मंच पर लाती है
फार्मसी शिक्षा के प्रसार में महती भूमिका निभाती है
और जब संस्था होगी तो कुर्सी होगी
कुर्सी होगी तो होड होगी
बूढ़े और जवानो में दौड होगी
एक तरफ अनुभव एक तरफ जवानी
जवानी है तूफानी तो अनुभव ने सीख ली थोड़ी बेईमानी
समय चक्र चल रहा है
शिक्षक से  राज शिक्षक 
राज शिक्षक से राजा शिक्षक में बदल रहा है
वक्त के साथ नए पैकर में ढल रहा है
राजा शिक्षक बनते ही राजनीति आयी
समाज सुधारक शिक्षक ने पूरी पारदर्शिता दिखाई
लोगों को बात भाई
बिकेंद्रीकरण प्रक्रिया ने हर राज्य में कुर्सी पहुंचा दी
आई पी एल के क्रिकेटरों के तरह
शिक्षकों की मह्त्वाकान्छाएं जगा दी
इतनी सारी कुर्सियां देखकर सब परेशान हो रहे हैं
बड़ी नहीं तो छोटी का ही सपना संजो रहे हैं
दोस्त मासूमियत से बोला भाई जी क्या आप भी भाग्य आजमायेंगे
हम बोले हम जहन्नुम में जायेंगे
तुम भाग्य आजमाने की बात करते हो हम वोट ही नहीं दे पायेंगे
कुर्सी तो दूर किसी लायक को कुर्सी तक पंहुचा भी नहीं पायेंगे
आपका नाम वोटर लिस्ट में शामिल क्यों नहीं?
दोस्त ने जैसे ही दूसरा सवाल उठाया
मैं बौखलाया
राजनीत में राज अनीत का पदार्पण हो रहा है
चुनाव की चर्चा जोर शोर से की जायेगी
रजिस्ट्रेसन की बात पानी का बुलबुला हो जायेगी
चेलो का वोटर लिस्ट में होगा नाम
गुरु और गुरुओ के गुरु होंगे गुमनाम
बड़े लाइफ मेंबर का सर्टिफिकेट लेकर घूमेंगे
बच्चे वोट देंगे
लोग कई कई राज्यों में रजिस्ट्रेसन करवाएंगे
मरहूमों के नाम भी वोटर लिस्ट में आयेंगे
हमने अपना फरियादे मेल भिजवाया
लेकिन कोई प्रभाव नहीं पाया
जैसे घोटाले के बाद सर्कार मौन हो जाते है
समिति भी मौन हो गयी
हमारे दिल की बात गुमनामी के अँधेरे में खो गयी
हम वोट दे न दे
चुनाव के परिणाम तो जरूर आयेंगे
सच्चाई हारे तो हार जाए
पर हर शिक्षक आवाज तो उठाये
वरना लोग माला पहनकर इतरायेंगे
और हम झुनझुना बजायेंगे

डॉ आशुतोष मिश्र 
निदेशक
आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ फार्मेसी , बभनान, गोंडा , उत्तरप्रदेश